
 , और उसका डरना स्पष्ट और तर्कपूर्ण प्रतीत होता है। इसका सार  क्या है? ऐसा कुछ क्यों करना चाहिए जिसमें वह मिट जाए?     गौतम बुद्ध से बार-बार पूछा जाता था: ‘आप बहुत अजीब व्यक्ति हैं। हम तो  यहां अपने आत्म अनुभव के लिए आए थे और आपका ध्यान ‘आत्मा का’ अनुभव न कराना  है।’ सुकरात एक महान प्रज्ञावान पुरुष था , लेकिन वह मन तक सीमित था:  ‘स्वयं को जानो’। लेकिन जानने के लिए कोई ' स्वयं ' है ही नहीं ।  झेन की  घोषणा है कि ' जानने को आत्मा जैसा कुछ है ही नहीं।’ जानने जैसा कुछ भी  नहीं है। तुम्हें बस पूर्ण के साथ एक हो जाना है। और भयभीत होने की कोई  आवश्यकता ही नहीं है...     जरा क्षण भर के लिए सोचो: जब तुम्हारा जन्म नहीं हुआ था, क्या कोई  व्यग्रता, कोई चिंता या कोई पीड़ा थी? तुम थे ही नहीं, तो कोई समस्या भी न  थी। समस्या तो तुम स्वयं ही हो, तुमसे ही समस्या शुरू होती हैं , और ज्यों  -ज्यों तुम बडे होते हो, अधिक से अधिक समस्याएं बढ़ जाती हैं...लेकिन  तुम्हारे जन्म से पूर्व, क्या कोई समस्या थी? झेन  सदगुरु नवागतों से  निरंतर पूछते थे--‘ तुम अपने पिता के जन्म के पूर्व कहां थे?
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