स्वार्थ शब्द का अर्थ समझते हो? शब्द बड़ा प्यारा है, लेकिन गलत हाथों   में पड़ गया  है। स्वार्थ का अर्थ होता है--आत्मार्थ। अपना सुख, स्व का  अर्थ। तो मैं तो  स्वार्थ  शब्द में कोई बुराई नहीं देखता। मैं तो बिलकुल  पक्ष में हूं। मैं तो कहता  हूं, धर्म  का अर्थ ही स्वार्थ है। क्योंकि  धर्म का अर्थ स्वभाव है।
और एक बात खयाल रखना कि जिसने स्वार्थ साध  लिया, उससे परार्थ सधता है।  जिससे  स्वार्थ ही न सधा, उससे परार्थ कैसे  सधेगा! जो अपना न हुआ, वह किसी और का  कैसे होगा!  जो अपने को सुख न दे  सका, वह किसको सुख दे सकेगा! इसके पहले कि तुम दूसरों  को प्रेम  करो, मैं  तुम्हें कहता हूं, अपने को प्रेम करो। इसके पहले कि तुम दूसरों के  जीवन   में सुख की कोई हवा ला सको, कम से कम अपने जीवन में तो हवा ले आओ। इसके   पहले कि  दूसरे के अंधेरे जीवन में प्रकाश की किरण उतार सको, कम से कम अपने  अंधेरे  में तो  प्रकाश को निमंत्रित करो। इसको स्वार्थ कहते हो! चलो  स्वार्थ ही सही, शब्द  से क्या  फर्क पड़ता है! लेकिन यह स्वार्थ बिलकुल  जरूरी है। यह दुनिया ज्यादा सुखी हो  जाए,  अगर लोग ठीक अर्थों में  स्वार्थी हो जाएं।
और जिस आदमी ने अपना सुख नहीं जाना, वह जब दूसरे  को सुख देने की कोशिश  में लग  जाता है तो बड़े खतरे होते हैं। उसे पहले तो  पता नहीं कि सुख क्या है? वह  जबर्दस्ती  दूसरे पर सुख थोपने लगता है, जिस  सुख का उसे भी अनुभव नहीं हुआ। तो करेगा  क्या? वही  करेगा जो उसके जीवन  में हुआ है।
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